20 मार्च को रंगभरी और आमलकी एकादशी; आंवला से होगी बीमारियां खत्म, जाने पूजा की विधि व महत्त्व
फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी 20 मार्च को है। इसे आमलकी यानी आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।सभी एकादशियों में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। फाल्गुन महीने में आने के कारण ये हिंदी कैलेंडर की आखिरी एकादशी होती है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा के साथ ही आंवले का दान करने का भी विधान है। जिससे कई यज्ञों का फल मिलता है। इस दिन आंवला खाने से बीमारियां खत्म होती है।
रंगभरी और आमलकी एकादशी
होली से चार दिन पहले आने से इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान शिव और मां पार्वती काशी गए थ। इसलिए इस दिन से बनारस में बाबा विश्वनाथ को होली खेलकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है। ब्रह्मांड पुराण के मुताबिक इस दिन आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन शुभ ग्रह योगों के प्रभाव से व्रत और पूजा का पुण्य और बढ़ जाएगा। पुराणों के मुताबिक भगवान विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए आमलकी एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ है। इस दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है व व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि आंवले का पेड़ भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन पूजा के दौरान आमलकी एकादशी की व्रत कथा पढ़ने का विधान है। इससे भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
आंवले के वृक्ष का महत्त्व
पद्म और विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को बहुत प्रिय होता है। इस पेड़ में भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी का भी निवास होता है। इस वजह से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ को पूजन और आंवले का दान करने से समस्त यज्ञों और 1 हजार गायों के दान के बराबर फल मिलता है। आमलकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है।
तिल, गंगाजल और आंवले से स्नान करने की परंपरा
इस एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल की सात बूंद, एक चुटकी तिल और एक आंवला डालकर उस जल से नहाना चाहिए। इसे पवित्र या तीर्थ स्नान कहा जाता है। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इसके बाद दिनभर व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। इससे एकादशी व्रत का पूरा पुण्य फल मिलता ह।
आमलकी एकादशी पूजा विधि
- रंगभरी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और दिन की शुरुआत श्री हरि और भगवान शिव के ध्यान से करें।
- इसके बाद स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- अब भगवान विष्णु का विधिपूर्वक गंगाजल से अभिषेक करें।
- साथ ही भगवान शिव और मां पार्वती का जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव और मां पार्वती को पुष्प अर्पित करें।
- अब देशी घी का दीपक जलाएं और भगवान की आरती करें।
- विशेष चीजों का भोग लगाएं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल को जरूर शामिल करना चाहिए।
- अंत में लोगों में प्रसाद का वितरण करें और खुद भी ग्रहण करें।