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बालाघाट: वनवासी रामकथा के आयोजन पंडित धीरेंद्र शास्त्री बोले- रामकथा में बालाघाट के पागलों का झुंड

हमारे हृदय में यह इच्छा भरी हुई है कि हम हिंदुओं को सनातन धर्म से बहकाने वालों के बहकावे में आने से बचा सकें। हम इसे रोकने के इरादे से आए हैं। हम जंगल में रहने वालों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे उसी कबीले और परिवार का एक गौरवपूर्ण हिस्सा हैं जिसने भगवान राम के वनवास के दौरान उनका साथ दिया था। अब समय आ गया है कि वे एक बार फिर हिंदू राष्ट्र के निर्माण का समर्थन करें। ये शब्द पीठाधीश्वर पं. वनवासी राम कथा के दौरान बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री।

रामकथा का वाचन कर रहे पंडित धीरेंद्र शास्त्री

बागेश्वर धाम सरकार पं. धीरेंद्र शास्त्री 23 मई को बालाघाट पर गए क्योंकि उन्हें रामकिशोर कावरे नाम के किसी व्यक्ति ने आमंत्रित किया था। कावरे भादुकोटापर वनवासी राम कथा कार्यक्रम की मेजबानी कर रहे थे। जब शास्त्री बालाघाट पहुंचे, तो उनका स्वागत रामकिशोर कावरे नाम के एक अन्य व्यक्ति ने किया, जो आयुष के लिए भी काम करता है।

लोगों का एक जत्था बघोली में बागेश्वर धाम महाराज नाम के एक संत के दर्शन करने गया। अपनी यात्रा समाप्त करने के बाद, वे राम नाम के एक देवता के बारे में कहानियाँ सुनने के लिए दूसरे स्थान पर गए। बहुत सारे लोग उन्हें देखकर खुश हुए और उन्होंने साथ में संगीत सुना और गाने गाए। एक आदमी ने रामकथा सुनाई और कई लोग सुनने आए। यह सभी के लिए बेहद खास और खुशी का समय था।

रामकथा में बालाघाट के पागलों का झुंड

वनवासी रामकथा कहानी में किसी ने कहा कि बालाघाट के कुछ दीवाने हैं। बहुत समय पहले, जब इंग्लैंड के बदमाश भारत को चोट पहुँचा रहे थे, तो भगवान बिरसा मुंडा नाम के एक बहादुर व्यक्ति ने भाला लेकर उनके सामने खड़े होकर उन्हें कुछ सख्त खाने को दिया। एक खास हॉर्न से उन्होंने जो आवाज निकाली थी, वह आज भी याद की जाती है।

कुछ लोग अदालत गए क्योंकि कुछ अन्य लोग एक कहानी के बारे में बात कर रहे थे और विचलित हो गए। बात करने वाले ने कहा कि वे लोग तो अंग्रेज़ों जैसे थे, लेकिन जिस जगह पर वे थे, वह जगह अच्छी थी। उन्होंने एक कहानी के बारे में एक सभा की और इस बारे में बात की कि किसी दिन बिरसा मुंडा व्यक्ति की तरह एक बड़ा परिवर्तन कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह उन लोगों के खिलाफ लड़ने से होगा जो अपने धर्म को नहीं मानते हैं।

जंगल में मंगल होता है यह सुना था, लेकिन आज नजारा भी देख लिया। उन्होंने कहा कि हम बाहर से सुंदर हो लेकिन चरित्र खराब हो, वह चित्र किसी का काम नहीं है भगवान के दरबार में चित्र नहीं चरित्र की पूजा है।

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