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प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल में एमपी को कितना महत्व, पहली बार एमपी के दो आदिवासी चेहरे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 3.0 कैबिनेट ने 9 मई की शाम 7.15 बजे शपथ ले ली। हिंदी पट्‌टी के राज्यों में एमपी ही इकलौता राज्य है, जहां से बीजेपी ने सभी 29 सीटें जीती हैं। मोदी ने कैबिनेट में भी इसका ध्यान रखा है। पहली बार मध्यप्रदेश से एक साथ 5 मंत्रियों ने पीएम मोदी के साथ ही शपथ ली है।

मोदी कैबिनेट से दिल्ली और भोपाल की राजनीति में क्या बदलेगा? किसका कद बढ़ेगा, किसका घटेगा? शिवराज के दिल्ली जाने से डॉ. मोहन यादव पर क्या असर होगा? ऐसे ही सवालों के हमने जवाब जानने की कोशिश की मंडे स्पेशल में…

अब जानिए मोदी 1.0 से लेकर 2.0 तक कैबिनेट में मध्यप्रदेश को कितनी तवज्जो ?

मोदी कैबिनेट 1.0 : 2014 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुषमा स्वराज, नरेंद्र सिंह तोमर और थावरचंद गेहलोत ने पहले दिन शपथ ली थी। फग्गन सिंह कुलस्ते, वीरेंद्र कुमार खटीक, अनिल माधव दवे और प्रहलाद पटेल को बाद में शामिल किया गया था। इसके अलावा एमपी से राज्यसभा सांसद प्रकाश जावड़ेकर को भी मंत्री बनाया गया था।

मोदी कैबिनेट 2.0: 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र सिंह तोमर, थावरचंद गेहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रहलाद पटेल ने पीएम मोदी के साथ शपथ ली थी। मोदी के साथ 57 मंत्रियों ने शपथ ली थी। बाद में गेहलोत से इस्तीफा लेकर उन्हें राज्यपाल बनाया गया था। 7 जुलाई 2021 को कैबिनेट विस्तार में सिंधिया और वीरेंद्र खटीक को शामिल किया गया। इसके अलावा एमपी कोटे के राज्यसभा सांसद धर्मेंद्र प्रधान और एल मुरुगन को भी कैबिनेट में जगह मिली थी।

मोदी कैबिनेट 3.0 : 2024 में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में ये पहला मौका है जब एमपी से एक साथ 5 मंत्रियों ने शपथ ली है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये दिखाता है कि मध्यप्रदेश का वजन मोदी कैबिनेट में बढ़ रहा है। जाहिर है कि मोदी ने एमपी को पूरी तवज्जो दी है।

यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार में कितनी तवज्जो

2004 की यूपीए-1 सरकार में अर्जुन सिंह, कमलनाथ दो मंत्रियों ने शपथ ली थी। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मंत्री बने थे। वहीं, 2009 की यूपीए-2 सरकार में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मौका मिला था।

क्या शिवराज का कद बढ़ेगा, कौन सा मंत्रालय मिलेगा?

शिवराज ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। जैसे ही वह पीएम मोदी का अभिवादन करने पहुंचे तो पीएम मोदी ने उनकी पीठ थपथपाई। उनके बगल में बैठे राजनाथ सिंह और अमित शाह ने भी गर्मजोशी के साथ शिवराज का अभिवादन किया।

17 साल एमपी के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को मिले इस प्रतिसाद से यह साफ हो गया है कि दिल्ली में उनका कद बढ़ा है। शपथ ग्रहण में मोदी के बाद राजनाथ, अमित शाह, नितिन गडकरी और जेपी नड्‌डा के बाद पांचवें क्रम में शिवराज की कुर्सी रखी गई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद जिस तरह शिवराज ने मोर्चा संभाला, उससे पहले ही साफ हो गया था कि पार्टी हाईकमान को उनके कद का पूरा अंदाजा है। सीएम पद से हटने के बाद भी शिवराज ने प्रदेश में नए नेतृत्व के साथ तालमेल बैठाकर खुद को एक निष्ठावान कार्यकर्ता के तौर पर स्थापित किया था।

विधानसभा में मिली जीत के बाद शिवराज अगले ही दिन छिंदवाड़ा पहुंच गए थे। उन्होंने कहा था कि वे मोदी को पूरे 29 कमल की माला पहनाना चाहते हैं। यानी एमपी की सभी लोकसभा सीटें जीतना चाहते हैं।

जब डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया तो शिवराज के राजनीतिक भविष्य को लेकर कयास लगने शुरू हो गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में शिवराज की लोकप्रियता को देखकर खुद प्रधानमंत्री मोदी को ये कहना पड़ा कि शिवराज और वे साथ-साथ मुख्यमंत्री रहे हैं। अब वे शिवराज को दिल्ली ले जाना चाहते हैं।

शिवराज ने मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री रहते हुए कृषि के क्षेत्र में बहुत अहम काम किया है। इसके अलावा सीएम बनने के बाद उनकी लाड़ली लक्ष्मी, लाड़ली बहना जैसी गेमचेंजर स्कीम देश भर में चर्चा में है।

ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवराज को कृषि मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास, शहरी विकास जैसे किसी अहम मंत्रालय की कमान दी जा सकती है।

क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले से ज्यादा ताकतवर होंगे?

2019 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का तख्ता पलटकर भाजपा को सत्ता में लाने के किंगमेकर रहे सिंधिया का कद भी मोदी कैबिनेट में बढ़ता दिख रहा है। सिंधिया ने न केवल अपनी गुना सीट जीती, बल्कि उनके प्रभाव वाली ग्वालियर और मुरैना में भी पार्टी को जीत दिलाई। सिंधिया स्कूल के 125 वें स्थापना दिवस समारोह में ग्वालियर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सिंधिया से उनका अलग रिश्ता है।

जानकार कहते हैं कि ग्वालियर-चंबल में सिंधिया के प्रभाव का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब वे कांग्रेस में थे, उस दौरान 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को इस अंचल की 34 में से 26 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, जबकि भाजपा की सीटें 22 से घटकर 7 रह गई थी। एक सीट बसपा ने जीती थी।

कांग्रेस की सीटें बढ़ने में सिंधिया का योगदान रहा। 2020 में वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 2023 के चुनाव में 34 में से 18 सीटें जीतने में भाजपा कामयाब रही। जबकि कांग्रेस के खाते में 16 सीटें आईं। 2018 की तुलना में भाजपा ने 11 सीटें ज्यादा जीती हैं। इससे स्वाभाविक है कि सिंधिया का कद भाजपा में बढ़ेगा।

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मोदी कैबिनेट में एमपी में कितना संतुलन रखा?

मोदी कैबिनेट में जातीय और भौगोलिक दोनों हिसाब से पूरा संतुलन रखने की कोशिश दिखी है। मध्य क्षेत्र से शिवराज सिंह चौहान, ग्वालियर-चंबल से ज्योतिरादित्य सिंधिया, बुंदेलखंड से डॉ. वीरेंद्र खटीक और मालवा-निमाड़ से सावित्री ठाकुर को स्थान दिया गया है।

इसमें जातीय संतुलन का भी पूरा ध्यान रखा गया है। शिवराज और सिंधिया को ओबीसी कोटे से, खटीक को एससी और सावित्री ठाकुर को शामिल कर महिला और एसटी दोनों वर्गों का ध्यान रखा गया है। विंध्य को इस कैबिनेट में स्थान नहीं मिला है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वहां से राजेंद्र शुक्ल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं। यहां से गणेश सिंह के नाम पर विचार हुआ था, लेकिन उनके नाम पर सहमति नहीं बन पाई।

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