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MP News: नगर निगम अध्यक्षों की कुर्सी बचाने की तैयारी, अविश्वास प्रस्ताव पास कराने तीन चौथाई सदस्यों की जरूरत होगी

MP सरकार ने नगर पालिका और नगर परिषद के बाद नगर निगम के अध्यक्षों की कुर्सी भी बचाने की तैयारी कर ली है। सरकार 16 नगर निगम के अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियम में संशोधन करने जा रही है। ये बदलाव अध्यादेश लाकर किया जाएगा। इसका ड्राफ्ट तैयार है।

MP News: नगर निगम अध्यक्षों के खिलाफ परिषद में अविश्वास प्रस्ताव पास करने के लिए तीन चौथाई सदस्यों की जरूरत होगी। साथ ही ये प्रस्ताव अध्यक्षों की नियुक्ति के तीन साल की अवधि के बाद ही लाया जा सकेगा। पुराने नियम के मुताबिक एक तिहाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते थे। परिषद में इसे पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत थी और ये अध्यक्ष की नियुक्ति के दो साल के भीतर लाया जा सकता था।

नए प्रस्ताव के ड्राफ्ट को कैबिनेट की मंजूरी के बाद राज्यपाल को भेजा जाएगा। इससे पहले सरकार नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों के खिलाफ लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव के लिए भी नगर पालिका एक्ट में संशोधन कर चुकी है। आखिर सरकार को नगर निगम अध्यक्षों के लिए नियमों में बदलाव करने की जरूरत क्यों महसूस हुई

सतना नगर निगम अध्यक्ष के खिलाफ आया था अविश्वास प्रस्ताव

सतना नगर निगम अध्यक्ष राजेश चतुर्वेदी के खिलाफ 9 सितंबर को कांग्रेस के 18 पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर अनुराग वर्मा को सौंपा था। वर्तमान नियम के मुताबिक, अध्यक्ष का कार्यकाल 2 साल पूरा होने पर अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसके लिए एक तिहाई पार्षदों की सहमति भी होना चाहिए।

सतना नगर निगम में कुल 45 वार्डों में से भाजपा के 20, कांग्रेस के 19 और 6 निर्दलीय पार्षद चुनाव जीते थे। अध्यक्ष को हटाने वाला अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 15 पार्षदों की सहमति जरूरी थी। ये प्रस्ताव परिषद् में आता तो इसे पारित करने के लिए दो तिहाई यानी 30 पार्षदों की जरूरत थी।

कांग्रेस के 19 और निर्दलीय 6 पार्षद मिलाकर 25 पार्षद होते हैं, बाकी पांच और पार्षदों की जरूरत थी। जाहिर है कि यदि बीजेपी के 5 पार्षद पाला बदल लेते तो बीजेपी के हाथ से अध्यक्ष की कुर्सी चली जाती।

नाकाम रही कांग्रेस, 18 में से 5 पार्षद पहुंचे ही नहीं

कांग्रेस अपने मंसूबे में नाकाम हो गई। कलेक्टर अनुराग वर्मा ने अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले 18 पार्षदों से वन टू वन चर्चा की। उनसे जाना कि वे अविश्वास प्रस्ताव पर सहमत हैं या असहमत? उन्होंने हस्ताक्षर का प्रमाणीकरण भी कराया।

इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई गई थी। इस दौरान कलेक्टर और पार्षद के अलावा नगर निगम के दो अधिकारी ही मौजूद थे। इसके बाद जब कलेक्टर ने पार्षदों की परेड करवाई तो 18 में से 5 पार्षद पहुंचे ही नहीं। वहीं, दो महिला पार्षदों ने लिखित में आवेदन दिया कि उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए। इस तरह केवल 11 पार्षदों की ही प्रस्ताव के लिए सहमति बची।

कांग्रेस की दो महिला पार्षदों ने बीजेपी जॉइन की

सूत्र बताते हैं कि जैसे ही कांग्रेस के 18 पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया, बीजेपी एक्टिव हो गई थी। कुछ पार्षदों के लापता होने की खबर मिली। कांग्रेस ने पार्षद माया कोल के लापता होने की शिकायत भी कोलगवां थाने में दर्ज कराई थी।

12 सितंबर को माया कोल के साथ एक अन्य कांग्रेस पार्षद अर्चना गुप्ता ने भोपाल पहुंचकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। कांग्रेस के पांच अन्य पार्षद भी परेड के दौरान नदारद रहे। इसकी वजह से ये प्रस्ताव गिर गया।

सतना जैसे हालात 10 और नगर निगम में

नगर पालिका निगम एक्ट के मुताबिक, अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पार्षदों की एक तिहाई संख्या जरूरी है। ऐसे में 16 में से 10 नगर निगम हैं, जहां विपक्ष और निर्दलीय पार्षद मिलकर अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। इनमें रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, कटनी, मुरैना, रतलाम, बुरहानपुर, खंडवा, सिंगरौली और छिंदवाड़ा शामिल हैं।

रीवा, कटनी, मुरैना और सिंगरौली में पार्षदों की कुल संख्या 45 है। यहां अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए एक तिहाई यानी 15 पार्षदों की जरूरत है। चारों नगर निगम में विपक्ष और निर्दलीय पार्षदों की संख्या 15 से ज्यादा है। इनमें मुरैना में कांग्रेस का अध्यक्ष है। बाकी 6 नगर निगम में भी कमोबेश ऐसे ही हालात हैं।

10 में से 6 नगर निगम में अध्यक्ष की कुर्सी को हो सकता था खतरा

अब इन 10 नगर निगम में अविश्वास प्रस्ताव दिया जाता तो इनमें 6 अध्यक्षों की कुर्सी को खतरा हो सकता था। दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव को परिषद् में पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। इन सभी छह नगर निगम में विपक्ष और निर्दलीय की संख्या दो तिहाई के बराबर तो नहीं थी मगर, बीजेपी के पार्षद पाला बदल लेते तो अध्यक्ष की कुर्सी को खतरा था।

बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी इसी वजह से चिंतित है कि कहीं बीजेपी पार्षदों के बगावती तेवर सामने न आ जाएं।

उदाहरण के तौर पर देखें तो रीवा में परिषद से अविश्वास प्रस्ताव पास कराने के लिए 30 पार्षदों की जरूरत है। कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों की संख्या 27 होती है। बीजेपी के तीन पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ वोटिंग करते तो कुर्सी जा सकती थी। यही हाल कटनी और सिंगरौली के भी हैं।

छिंदवाड़ा: पार्षदों के पाला बदलने से कांग्रेस अल्पमत में

छिंदवाड़ा के 48 वार्डों में से 27 कांग्रेस और 20 बीजेपी ने जीते थे जबकि 1 निर्दलीय पार्षद जीता था। मार्च 2024 में कांग्रेस के 7 पार्षद चंदू ठाकरे, धनराज भूरा भावरकर, जगदीश गोदरे, लीना तिरगाम, दीपा माहोरे, रोशनी सल्लाम और संतोषी वाडिवा भाजपा में शामिल हो गए थे।

इस तरह से बीजेपी पार्षदों की संख्या 20 से बढ़कर 27 हो गई। वहीं, कांग्रेस पार्षदों की संख्या 21 रह गई। ऐसे में बीजेपी पार्षद यदि छिंदवाड़ा नगर निगम के अध्यक्ष सोनू मागो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आते तो उनकी कुर्सी खतरे में थी। अब नए नियम लागू होने पर उनकी कुर्सी बच जाएगी।

बुरहानपुर: सिर्फ 1 वोट से जीतकर अध्यक्ष बनी थीं अनीता यादव

बुरहानपुर नगर निगम अध्यक्ष चुनाव कांग्रेस की अनीता अमर यादव ने महज 1 वोट से जीता था। अनीता को 25 वोट मिले थे जबकि भाजपा के धनराज महाजन को 24। यहां अध्यक्ष चयन में निर्दलीय पार्षद निर्णायक की भूमिका में रहे। एआईएमआईएम के एक पार्षद का भी कांग्रेस को समर्थन मिला था।

बुरहानपुर में 48 में से भाजपा के 19, कांग्रेस के 15 और 14 निर्दलीय पार्षद जीते हैं। यदि अध्यक्ष को हटाना है तो मौजूदा नियम के अनुसार 32 पार्षदों की सहमति चाहिए। बीजेपी और निर्दलीयों की संख्या 33 है। अब नए नियम के मुताबिक तीन चौथाई यानी 36 पार्षदों की सहमति जरूरी होगी।

मुरैना: पुराने नियम में 4 पार्षदों की जरूरत थी, नए में 7 चाहिए

मुरैना नगर निगम के 45 वार्डों में से कांग्रेस ने 19 जीते हैं, बीजेपी के पास 15 और निर्दलीयों के पास 11 वार्ड हैं। बीजेपी और निर्दलीय पार्षद मिलकर अविश्वास प्रस्ताव लाते तो दो तिहाई बहुमत के लिए 4 पार्षद कम पड़ते। जानकार कहते हैं कि बीजेपी जोड़-तोड़ कर इस संख्या को पूरा कर सकती थी लेकिन नए नियम के मुताबिक अब 34 पार्षदों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में यहां अध्यक्ष की कुर्सी अब सेफ रहेगी।

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