MP News: सरकारी खरीदी पर किसानों की रुचि नहीं, 1 महीने में केवल 37 किसान सोयाबीन लेकर मंडी पहुंचे
MP News: पहली बार सोयाबीन की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की जा रही है। इसके बावजूद किसान इस योजना में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
MP News: एक महीने पहले शुरू हुई सरकारी खरीदी प्रक्रिया में अब तक केवल 37 किसानों ने ही लगभग 820 क्विंटल सोयाबीन बेचा है। जबकि जिले में 10 उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं। इस बार करीब 7 हजार किसानों ने पंजीकरण भी करवाया था। पंजीकरण के बाद 243 किसानों ने स्लाॅट बुकिंग भी कराई है, लेकिन इसके बावजूद किसानों की भागीदारी कम है।
जानकारी के अनुसार सरकार ने इस साल सोयाबीन की खरीदी के लिए 4 हजार 892 रुपए प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य तय किया था। लेकिन किसानों के बीच इस योजना को लेकर उत्साह का अभाव देखा जा रहा है। किसानों का मानना है कि आने वाले महीनों में सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से ऊपर जा सकती हैं, इसलिए वे इसे अभी बेचने की बजाय भंडारण करने की योजना बना रहे हैं।
MP News: बाजार में समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमतें मिलने की उम्मीद
जिले में इस साल सोयाबीन की फसल पर किसानों ने भरोसा जताया था, जिसके चलते बीते साल की तुलना में इस बार लगभग 3 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी की गई है। लेकिन उत्पादन लागत में वृद्धि और बिक्री मूल्य में कमी के चलते किसान परेशान हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से अधिक कीमतें बाजार में मिल सकती हैं। किसानों के आक्रोश के कारण पिछले कुछ महीनों में सोयाबीन की कीमतों को लेकर कई प्रदर्शन हुए थे। किसानों ने सोयाबीन की फसल का समर्थन मूल्य 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल करने की मांग की थी। इसके बाद सरकार ने सोयाबीन की खरीद एमएसपी पर शुरू की।
MP News: बारिश ने सोयाबीन की गुणवत्ता को प्रभावित किया
इस साल की फसल के बारे में किसानों का कहना है कि उत्पादन में बारिश की कमी और फसल की कटाई से पहले आई भारी बारिश ने सोयाबीन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। वर्तमान में क्षेत्र में कुछ किसानों को सोयाबीन के 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक मिल रहे हैं, जबकि बेहतर गुणवत्ता वाले सोयाबीन के लिए उन्हें और अधिक कीमत मिलने की उम्मीद है। किसान अब 2-3 महीने का समय भंडारण में लगाकर अच्छे दाम पर फसल बेचने की सोच रहे हैं। सरकारी खरीदी केंद्रों में लाखों रुपए की सामग्री, बरदान और अन्य संसाधन खर्च किए गए हैं, लेकिन किसान इस सरकारी खरीद में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।