UN की रिपोर्ट: ‘जल-संकट से सबसे ज्यादा जूझेगा भारत’
संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन से पहले, संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व जल विकास रिपोर्ट 2023" जारी की, जिसमें भारत के संबंध में महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां शामिल थीं। यह उल्लेख किया गया है कि हमारे यहां सबसे अधिक जल संकट का सामना करने की संभावना है।
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है, आने वाला समय कई देशों को पानी की गंभीर कमी से जूझने के लिए मजबूर कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2050 तक दुनिया में सबसे बड़े जल संकट का सामना करने का अनुमान है। इसके अलावा, पाकिस्तान और चीन के पड़ोसी देश भी पानी की कमी का अनुभव करेंगे। इन देशों में कई नदियों के प्रवाह की स्थिति काफी कमजोर होने का अनुमान है।
यह अशुभ भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र ने अपनी कुछ रिपोर्टों के आधार पर की थी। कृपया सूचित रहें कि संयुक्त राष्ट्र ने 2023 संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन से पहले “संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2023” जारी की थी। इसके अतिरिक्त 22 मार्च को विश्व स्तर पर विश्व जल दिवस मनाया गया। उस दौरान यूएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया की करीब 1.7 से 2.40 अरब शहरी आबादी जल संकट से जूझ रही होगी।
एशिया में लगभग 80% आबादी जल संकट के कारण चुनौतियों का सामना कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में 9.33 अरब की वैश्विक आबादी पृथ्वी पर भीषण जल संकट से जूझ रही थी. इसके बाद, विभिन्न देशों में जल संकट तेजी से बढ़ा। रिपोर्ट में एक और दावा किया गया है कि एशिया में लगभग 80% आबादी वर्तमान में पानी की कमी से जूझ रही है। यह संकट पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान में सबसे अधिक स्पष्ट है।
दुनिया की लगभग 26% आबादी वर्तमान में पानी की कमी का सामना कर रही है।
वर्तमान में, एक महत्वपूर्ण चिंता है कि दुनिया की लगभग 26% आबादी को साफ पानी तक पहुंच नहीं मिल रही है। पश्चिम एशिया और अफ्रीका के कई देशों में जल संकट है। लोगों को पीने के लिए साफ पानी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। दुनिया भर में लगभग 2 से 3 अरब लोग हर साल कम से कम एक महीने के लिए पानी की कमी से जूझते हैं।
इस तरह के संकट से भारत सबसे अधिक प्रभावित होगा।
संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत में पानी की कमी काफी गंभीर होने की आशंका है। यह अनुमान लगाया गया है कि इस तरह के संकट से भारत सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होगा। यह चिंता व्यक्त की गई है कि इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों के प्रवाह में कमी आ सकती है। यूनेस्को के निदेशक आंद्रे एज़ोले ने वैश्विक जल संकट से बाहर आने से पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तत्काल वैश्विक प्रावधान की आवश्यकता पर बल दिया।