इंदौर: बीएससी फाइनल ईयर की स्टूडेंट ने किया सुसाइड नोट में लिखा ‘डियर पापा आई एम सॉरी’
इंदौर के एक्रोपोलिस कॉलेज की एक छात्रा ने परीक्षा में फेल होने से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. घटना से पहले, छात्रा ने अपने माता-पिता से अपनी चिंताओं के बारे में बात की थी और उसके पिता ने उसे मार्गदर्शन प्रदान करने का प्रयास किया था। हालांकि, उसका तनाव और अवसाद बना रहा, जिसके कारण उसने दुर्भाग्यपूर्ण कार्रवाई की। टीआई शशिकांत चौरसिया के अनुसार छात्रा का नाम हर्षिता (21) है और वह सिंघाना धार निवासी विनोद शिंदे की पुत्री संत नगर में रहती थी. वह एक कमरा किराए पर लेकर एक्रोपोलिस कॉलेज में बीएससी के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। पुलिस को मंगलवार शाम आत्महत्या की सूचना मिली, जिस दौरान हर्षिता की परीक्षा चल रही थी, जिसके लिए वह अच्छा प्रदर्शन करने में असफल रही थी। परीक्षा में असफल होने के बाद हर्षिता ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने का कठोर कदम उठाया।
पिता से कहा आपकी बेटी बहुत स्ट्रॉन्ग है
पुलिस को हर्षिता के कमरे से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उसने लिखा था ‘डियर पापा, आई एम सॉरी’। इसके बाद दो लाइन में लिखा है कि “तेरी बेटी बहुत स्ट्रॉन्ग है, लेकिन यहां तो पापा से तेरी बेटी हार गई”। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया और बुधवार को परिजन इंदौर से शव लेकर पोस्टमार्टम के बाद धारा के लिए रवाना हो गए.
केमिस्ट्री का बिगड़ने को लेकर मां से की थी चर्चा
हर्षिता के चचेरे भाई विनोद ने बताया कि मंगलवार सुबह हर्षिता की मां संगीता से मोबाइल पर बात हुई थी। उसने अपनी बातचीत में बताया था कि सोमवार को उसका केमिस्ट्री का पेपर था, जो अच्छा नहीं गया, जिससे उसे काफी परेशानी हुई। संगीता ने उसे सारी स्थिति बता दी थी। हालांकि, हर्षिता ने फिर भी यह कदम उठाया।
पांच दिन पहले ही भाई गया था गांव
हर्षिता का छोटा भाई गौरव इंदौर में कानून की पढ़ाई कर रहा है। वह पांच दिन पहले अपने माता-पिता से मिलने सिंघाना गया था। मंगलवार को उसने अपनी बहन को फोन करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद उसने अपने मौसेरे भाई विनोद को फोन किया। उसके आने पर विनोद ने हर्षिता को गेट खोलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं मानी। बाद में जब गेट खोला गया तो वह फंदे से लटकी मिली।
बेंगलुरु में हुआ था प्लेसमैंट, कलेक्टर बनने का था सपना
हर्षिता एक मेधावी छात्रा थी जो अपने शैक्षणिक वर्षों के दौरान लगातार अपनी कक्षा में शीर्ष पर रही। इन्दौर में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान बंगलौर स्थित एक कंपनी द्वारा उनका चयन किया गया, जिसने उन्हें लगभग दस लाख के पैकेज की पेशकश की। हालांकि, इस प्रभावशाली प्रस्ताव के बावजूद, वह अभी भी कलेक्टर बनने की आकांक्षा रखती थी, एक ऐसा लक्ष्य जो उसके परिवार की अपेक्षाओं के अनुरूप था। इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए, वह अपनी परीक्षा पूरी करने के बाद बैंगलोर में शिफ्ट होने के साथ-साथ एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी।