होली के रंग टेसू के संग, चुकंदर और हल्दी के प्राकृतिक रंगो की होली
एक बार फिर आकर्षित कर रहे पलाश के फूल पलाश से तैयार होता है हर्बल कलर कोरोना को देखते हुए भी बढ़ी है पलाश की डिमांड
शैलकृति समूह
रंगो का त्यौहार होली ८ मार्च को है शैलकृति समूह ऐसे कलर और गोबर के सामान को तैयार करता है जिसमे कई महिलाओ को ट्रैन किया जाता है और कलर बनाने का कार्य किया जाता है जिसमे महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिस की है जिसमे इकोफ्रैंडली वस्तुओ को बनाया जाता है ये भोपाल में कोलार में छोटा समूह संचालित होता है जिसको एक महिला संचालित करती है उनका उदेश्य है की घर घर तक स्वदेशी वस्तुओ को पहुंचाया जाये ।
कैसे बनाये जाते है रंग
सू (पलाश) के फूलों को रातभर पानी में भिगो कर बहुत ही सुन्दर नारंगी रंग बनाया जा सकता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण भी टेसू के फूलों से होली खेलते थे। टेसू के फूलों के रंग को होली का पारम्परिक रंग माना जाता है। हरसिंगार के फूलों को पानी में भिगो कर भी नारंगी रंग बनाया जा सकता है|
एक चुटकी चन्दन पावडर को एक लीटर पानी में भिगो देने से नारंगी रंग बनता है।
चारों तरफ होली मनाने के लिए युवा वर्ग रोमांचित है। बिना रंग के होली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है, लेकिन मुश्किल यह है कि इन रंगों में जो केमिकल पाए जाते हैं, वे हमारी त्वचा और आँखों के लिए हानिकारक होते हैं। हम आपको प्राकृतिक रंग बनाने की विधि बता रहे हैं जिससे आप आकर्षक व चटकीले रंग घर पर ही बना सकते हैं और होली का खूब मजा ले सकते हैं।
सूखे लाल चन्दन को आप लाल गुलाल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सुर्ख लाल रंग का पावडर होता है और त्वचा के लिए अच्छा होता है।
जासवंती के फूलों को सुखाकर उसका पावडर बना लें और इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए आटा मिला लें। सिन्दूरिया के बीज लाल रंग के होते हैं, इनसे आप सूखा व गीला लाल रंग बना सकते हैं।
दो छोटे चम्मच लाल चन्दन पावडर को पाँच लीटर पानी में डालकर उबालें। इसमें बीस लीटर पानी और डालें। अनार के छिलकों को पानी में उबालकर भी लाल रंग बनाया जा सकता है।
बुरांस के फूलों को रातभर पानी में भिगो कर भी लाल रंग बनाया जा सकता है, लेकिन यह फूल सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।
पलिता, मदार और पांग्री में लाल रंग के फूल लगते हैं। ये पेड़ तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। फूलों को रातभर में पानी में भिगो कर बहुत अच्छा लाल रंग बनाया जा सकता है।
रंग उत्सव पूरे देश में कल मनाया जाएगा लेकिन प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कर ली थी। जंगल में पलाश के फूल बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगे हैं। जंगल का भीतरी वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगता है मानो पेड़ में किसी ने दहकते अंगारे लगा रखा हो। आमतौर पर वसंत ऋतु के समय यह फूल खिलने लगता है। होली के आसपास यह फूल चरम पर आकर जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा जाता है। अभी देश व विदेशों में चीन से फैले कोरोना वायरस के दहशत के कारण होली पर लोग रंग.गुलाल खेलने से परहेज का फरमान जारी कर रहे हैं। और तो और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ अन्य मंत्रियों ने भी होली नहीं मनाने का निर्णय लिया है। एेसे में पलाश के फूल की डिमांड बढ़ रही है क्योंकि पलाश के फूल से बने रंग प्राकृतिक होते हैं और इससे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता।
पलाश के पत्ता शुद्धता का प्रतीक
पलाश यानी टेसू के पत्तों से दोना पत्तल भी बनाए जाते हैं। कहा जाता है कि इसके पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का लाभ और फल प्राप्त होता है। हांलाकि टेसू के फूलों को देव अर्चना से दूर रखा गया है।
शिव के अभिशाप से अंगारे वने फूल
पैाराणिक कथाओं के दौरान प्रसंगों में आता है कि कामदेव ने इसी वृक्ष पर बैठकर भगवान शिव की तपस्या भंग की थी। शिव ने क्रोध में अपनी तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। वृक्ष जलने लगे तो उन्होंने शिव की प्रार्थना कर अपने का बचाया। मानते हैं कि इसी वजह से शिव के दहते हुए तीसरे नेत्र की भांति इसके फूल हो गए।