RSS में शामिल होना राजनीति नहीं – हाईकोर्ट, 9 जुलाई को ही हटा दिया था बैन
इंदौर। केंद्रीय कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ RSS की गतिविधियों में शामिल नहीं होने के केंद्र सरकार के पुराने आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने विस्तृत आदेश जारी किया है। जिसमें हाई कोर्ट ने कहा, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1966 फिर 1970 और फिर 1980 में RSS को सांप्रदायिक संगठन मानकर उसकी गतिविधियों, शाखाओं में शामिल होने पर रोक लगा दी गई थी।
कोर्ट ने यह टिप्पणी की
मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ का कहना है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने और यह स्वीकार करने में कि उसने आरएसएस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से प्रतिबंधित संगठनों की लिस्ट में रखा था और हटने में पांच दशक का समय लग गया।
बहस के बाद फैसला सुरक्षित
कोर्ट ने यह टिप्पणी केंद्र सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिका का निराकरण करते हुए कही। मामले से जुड़े सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सरकार इस सर्कुलर में फिर से संशोधन ना करें
गुरुवार को प्रशासनिक जज एसए धर्माधिकारी, जस्टिस गजेंद्र सिंह की डिवीजन बेंच ने यह आदेश जारी किया है।
हाई कोर्ट ने फैसले में कहा, केंद्रीय गृह विभाग ने पिछले दिनों सर्कुलर में संशोधन कर दिया था। इसके बावजूद हम विस्तृत आदेश जारी कर रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि सरकार इस सर्कुलर में फिर से संशोधन ना कर दे।
रिटायर्ड कर्मचारी RSS में शामिल हो सकते हैं, इसका प्रचार हो
कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र ने संबंधित सर्कुलर में जो संशोधन किया गया है, उसे ऑफिशियल वेबसाइट पर डालें।
देशभर में जनसंपर्क विभाग के माध्यम से प्रचारित करें कि रिटायर होने के बाद कर्मचारी आरएसएस में शामिल हो सकते हैं। RSS के द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर सहित समाज उत्थान के कई प्रकल्प भी चलाए गए, जिससे समाज बेहतर हुआ है और ये समाज को काफी सुविधाएं मिली हैं।
केंद्र ने 9 जुलाई को ही RSS से बैन हटा दिया था
हाई कोर्ट को सुनवाई में यह बताया गया कि केंद्र ने 9 जुलाई 2024 को ही आदेश जारी कर आरएसएस को प्रतिबंधात्मक संगठन से बाहर कर दिया है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पुरुषोत्तम गुप्ता की याचिका पर सुनवाई
केंद्रीय कर्मचारी रहे पुरुषोत्तम गुप्ता ने यह याचिका दायर की थी। याचिका में उल्लेख किया था कि रिटायर होने बाद बचा हुआ जीवन संगठन को समर्पित करना चाहते हैं, लेकिन रोक की वजह से नहीं कर पा रहे हैं। हाई कोर्ट ने केंद्र को जवाब देने कई बार समय दिया, लेकिन जवाब पेश नहीं हो रहा था।
आखिर में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए केंद्रीय गृह सचिव को वर्चुअली हाई कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने को कहा था।
RSS पर 58 साल पहले लगाई थी रोक
उल्लेखनीय है कि 30 नवंबर 1966 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के आरएसएस सहित अन्य विचारधारा वाले संगठनों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 1970 और 1980 में भी यह सर्कुलर निकाले गए थे।
कोर्ट ने कहा कि आखिर 1960 और 1990 के दशकों में आरएसएस की गतिविधियों को किस आधार पर सांप्रदायिक माना गया। कौन सी रिपोर्ट थी जिसके कारण सरकार फैसले पर पहुंची। इस सोच पर पहुंचने का क्या आधार था।
RSS से जुड़ना राजनीतिक नहीं
RSS संघ की सदस्यता लेने का लक्ष्य स्वयं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल करना नहीं हो सकता है। सांप्रदायिक या राष्ट्र विरोधी या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में शामिल होना तो दूर की बात है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि ऐसा नहीं हो कि बाद में किसी सरकार की पसंद ना हो और किसी संगठन को फिर प्रतिबंधात्मक सूची में डाल दिया जाए।
इसका स्पष्ट कारण, आधार होना चाहिए ऐसी सामग्री होनी चाहिए। कई केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की देश सेवा की आकांक्षाएं, प्रतिबंध से कम हो गई थीं।
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