भोपाल में हजारों वृक्षों को कटने से बचाने के लिए आंदोलन शुरू : बोलीं-बुजुर्गों ने पेड़ लगाए, बच्चों की तरह पाला; इन्हें कैसे कटने दें
भोपाल में मंत्री-विधायकों के बंगलों के लिए 29 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाने के प्लान का विरोध में चिपको आंदोलन शुरू हो गया है। शिवाजी नगर और तुलसीनगर में ये पेड़ लगे हैं। यहां के लोग लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी सड़क पर उतर गए। महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। वे भावुक होकर पेड़ों को दुलारने लगी। विद्या पाटिल ने कहा कि ये पेड़ बुजुर्गों ने लगाए हैं, हमने इन्हें बच्चों की तरह पाला। अब इन्हें कैसे कटने दें?
गुरुवार सुबह शिवाजी नगर और तुलसी नगर इलाके के लोग 5 नंबर स्टॉप के पास राम मंदिर परिसर में जुटे। इसके बाद महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। विद्या पाटिल, सुखबाला तो रुआंसी हो गईं। सुखबाला कहा कि ये पेड़ हमारे परिवार का हिस्सा है। इनके साथ ही हम भी बड़े हुए हैं, लेकिन अब इन्हें काटने का फरमान आया है। विद्या ने कहा कि इन पेड़ों को बच्चों की तरह पाला जा रहा है। हमें कहा जा रहा है कि आपको कलखेड़ा भेजा जाएगा। यदि भेजना ही है तो मंत्री-विधायकों को भेजें।
सरकार का फरमान गलत, विरोध करते रहेंगे
रूपाली शर्मा ने कहा, तुलसीनगर और शिवाजी नगर में शहर की सबसे ज्यादा हरियाली है। उसी को काटने की अब बात हो रही है। सरकारी बंगले बनाए जाएंगे। यह फरमान गलत है। सरकार एक बार फिर से सोंचें। ये पेड़ कतई न कटे, क्योंकि ये हमारी ऑक्सीजन बैंक है। यदि पेड़ काटे जाते हैं तो सड़क पर उतरकर उग्र प्रदर्शन करेंगे।
पेड़ काटना बड़ा अपराध है
अभिभाषक विजय सिरवैया ने कहा, स्मार्ट सिटी के दौरान भी आंदोलन किया था। वहीं पर मंत्री और विधायकों के आवास बनने चाहिए। हरियाली कट जाएगी तो भोपाल का टेम्प्रेचर बढ़ जाएगा। इसलिए सरकार इन्हें न काटे। कोरोना के दौरान पेड़ों की ऑक्सीजन के दौरान ही इंसान बचे हैं। पेड़ काटना बड़ा अपराध है। कानून में इसे बड़ा अपराध माना गया है।
एक दिन पहले भी हो चुका प्रदर्शन
इससे पहले बुधवार को 5 नंबर स्टॉप पर बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो चुका है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा, पर्यावरणविद् सुभाष सी. पांडे, लोकसभा चुनाव के कांग्रेस कैंडिडेट रहे अरुण श्रीवास्तव, नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष शबिस्ता जकी, पार्षद योगेंद्र सिंह गुड्डू चौहान, पूर्व पार्षद अमित शर्मा, पर्यावरण मित्र राशिद नूर ने कहा था कि पेड़ काटे जाते हैं तो उग्र प्रदर्शन करेंगे। फिर चाहे सरकार उन्हें जेल में ही क्यों न बंद कर दें। प्लान को सरकार मंजूर न करें।
14 जून को भी होगा बड़ा प्रदर्शन
भोजपाल जन कल्याण एवं विकास परिषद भी पेड़ों के काटे जाने के विरोध में है। इसे लेकर एक बैठक भी हो चुकी है। पर्यावरणविद् उमाशंकर तिवारी ने बताया, 29 हजार पेड़ों को बचाने के लिए सड़क पर उतरेंगे। ये पेड़ 50 से 70 साल तक पुराने हैं। 14 जून को शाम 7 बजे नूतन कॉलेज के सामने शिवाजी नगर में पेड़ों का पूजन रक्षा सूत्र बांधकर पेड़ों की रक्षा का वचन दोहराएंगे। साथ ही पेड़ों की रक्षा के लिए शहर के सांसद, विधायक और अधिकारियों के पास जाएंगे। जरूरत पड़ी तो कोर्ट की शरण में जाएंगे।
क्या है चिपको आंदोलन
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिए उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिए इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे जमीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
- सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
- इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा ‘पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है’ गढ़ने के लिए जाना जाता है।
- 1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिए।
- भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के खिलाफ अभियान चलाया । उन्होंने आजादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।
- पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।
- उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।