चैत्र मास की अमावस्या देवी-देवताओं के साथ ही पितरों के लिए शुभ काम करने का पर्व है आज
आज दिनांक 21 मार्च है, और यह वर्ष 2079 के चैत्र मास का अंतिम दिन है। धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह दिन एक महत्वपूर्ण अर्थ रखता है। इस दिन अनुष्ठान करने और मंत्र जाप करने का अभ्यास सफल परिणाम दे सकता है। अगले दिन यानी 22 मार्च को नए साल 2080 की शुरुआत होगी। आइए चैत्र अमावस्या के महत्व के बारे में कुछ रोचक तथ्यों को जानें।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार चैत्र अमावस्या के अवसर पर देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करने की सलाह दी जाती है और शाम के समय तुलसी के पौधे के पास दीपक भी जलाना चाहिए। प्रात:काल देवताओं की पूजा करें, मध्याह्न में श्राद्ध करें और शाम को तुलसी की पूजा करें।
सुबह घर के मंदिर में बाल गोपाल के साथ ही विष्णु जी और लक्ष्मी जी का अभिषेक करें। इसके लिए दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग करना चाहिए।
शंख में केसर मिश्रित दूध भरकर भगवान को अर्पित करें। दूध डालते समय “कृष्णाय नमः” और “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। दूध के बाद जल से देवी का अभिषेक करें।
देवता को नए वस्त्र भेंट करें। सुगंध लगाएं। मालाओं से शृंगार करें। चंदन का तिलक लगाएं। तुलसी के पत्तों का मक्खन, शक्कर और मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं और आरती करें।
दोपहर में करना चाहिए पितरों के लिए धूप-ध्यान
चैत्र अमावस्या की दोपहर गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब पितरों का ध्यान करते हुए अंगारों पर गुड़-घी डालें। घर-परिवार और कुटुंब के मृत सदस्यों को पितर कहा जाता है। गुड़-घी अर्पित करने के बाद हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों का ध्यान करते हुए जमीन पर छोड़ दें। इसके बाद गाय को रोटी या हरी घास खिलाएं। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।
शाम को तुलसी के पास जलाएं दीपक
सुबह तुलसी के पौधे को पानी देने और सूर्यास्त के बाद उसके पास दीपक जलाने की सलाह दी जाती है। हालांकि शाम के समय तुलसी के पौधे को न छूने की सलाह दी जाती है। दीपक जलाने के बाद तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें।