सिंधिया की खाली राज्यसभा सीट पर ये दिग्गज हैं दावेदार, जातीय समीकरण में नरोत्तम-जयभान फिट
गुना से सांसद निर्वाचित होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राज्यसभा की सीट रिक्त घोषित हो गई है। अब इस रिक्त सीट पर उपचुनाव होंगे। विधानसभा में संख्या के हिसाब से खाली होने वाली राज्यसभा की सीट फिर भाजपा के खाते में जाना तय है।
भाजपा सूत्रों का कहना हैं कि पार्टी एक बार फिर जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर उम्मीदवार तय करेगी। फरवरी में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने दलित, ओबीसी व महिला कार्ड खेला था। इस बार ठाकुर या ब्राह्मण कोटे से यह पद भरे जाने की संभावना ज्यादा है।
हालांकि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अशोक नगर में केंद्रीय मंत्री अमित शाह एक सभा में पूर्व सांसद केपी यादव को दिल्ली ले जाने का संकेत दे चुके हैं। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा यादव को राज्यसभा का टिकट दे सकती है।
जानिए, एक सीट पर कैसे बनेगा जातीय समीकरण
ठाकुर या ब्राह्मण को मौका दिया जा सकता है
मध्यप्रदेश के 5 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल 2 अप्रैल 2024 को समाप्त हुआ था। इसमें भाजपा के चार सांसद धर्मेंद्र प्रधान, डॉ. एल मुरुगन, अजय प्रताप सिंह और कैलाश सोनी थे, जबकि कांग्रेस के राजमणि पटेल राज्यसभा सांसद थे।
भाजपा ने चार सीटों में से तीन पर ओबीसी से बंशीलाल गुर्जर, दलित समाज से उमेश नाथ महाराज और महिला कोटे से माया नारोलिया को उम्मीदवार बनाया और राज्यसभा में भेजा। डाॅ. मुरुगन को फिर से मध्यप्रदेश के कोटे से राज्यसभा में भेजा था। भाजपा सूत्रों का कहना है कि जातीय समीकरण के हिसाब से अब ठाकुर या ब्राह्मण को मौका दिया जा सकता है।
अब जानिए, राज्यसभा की एक सीट, कौन-कौन दावेदार
सिंधिया के लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हो गई। इस एक सीट के लिए भाजपा के तीन बड़े नेता पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव के नाम राजनीतिक गलियारे में चल रहे हैं। प्रबल दावेदार पूर्व सांसद केपी यादव को माना जा रहा है।
अब जानिए क्यों माना जा रहा इन्हें दावेदार
केपी यादव,पूर्व सांसद
दावेदार क्यों
- ओबीसी वर्ग से आते हैं।
- यादव का टिकट काटकर इस बार सिंधिया को दिया गया।
- अमित शाह ने इसके संकेत दिए थे।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रहे केपी यादव 2018 में मुंगावली से विधानसभा का टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने उम्मीदवार बनाया था।
यादव ने सिंधिया को सवा लाख वोट से हराया था। इसके बाद 2020 में सिंधिया बीजेपी में आ गए थे।
नरोत्तम मिश्रा, पूर्व मंत्री
दावेदार क्यों
- ब्राह्मण चेहरा।
- अमित शाह के करीबी।
- न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक रहे।
जानकार कहते हैं कि डॉ. नरोत्तम मिश्रा की दावेदारी राज्यसभा के लिए मजबूत मानी जा रही है। उन्हें मुरैना से लोकसभा चुनाव में उतारने की रणनीति बनी थी, लेकिन तोमर के सीट छोड़ने पर उनके करीबी शिव मंगल सिंह को टिकट दिया गया। डॉ. मिश्रा भले ही दतिया से विधानसभा का चुनाव हार गए, लेकिन लोकसभा में उनके विधानसभा क्षेत्र से संध्या राय को 20 हजार से ज्यादा की लीड मिली है।
पार्टी ने उन्हें न्यू जॉइनिंग कमेटी का प्रदेश संयोजक बनाया, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। लोकसभा चुनाव के दौरान ढाई महीने में कांग्रेस के तीन पूर्व सांसद, 3 विधायक, 17 पूर्व विधायक, 1 महापौर, 2 पूर्व महापौर, 300 जनप्रतिनिधि, पार्षद व सरपंचों ने भाजपा का दामन थामा।
रमाकांत भार्गव, पूर्व सांसद
दावेदार क्यों:
- ब्राह्मण चेहरा।
- विदिशा से सांसद थे।
- पार्टी ने इस बार टिकट काटकर शिवराज को दिया।
रमाकांत भार्गव विदिशा से सांसद थे, लेकिन पार्टी ने इस बार लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यहां से मैदान में उतारा। वे 8 लाख 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हैं। ऐसे में यह संभावना ज्यादा है कि शिवराज के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद भार्गव को बुधनी से उपचुनाव में टिकट मिल सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो भार्गव को राज्यसभा में भेजा जा सकता है।
जयभान सिंह पवैया, पूर्व मंत्री
दावेदार क्यों:
- ग्वालियर से सांसद रह चुके हैं।
- राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे।
- महाराष्ट्र भाजपा के सह प्रभारी।
मध्य प्रदेश से बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक रहे जयभान सिंह शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और महाराष्ट्र भाजपा के सह प्रभारी हैं।1999 में वे ग्वालियर संसदीय सीट से सांसद भी रह चुके हैं। इसके बाद वे 2013 में मप्र विधानसभा के सदस्य बने।
2016 में शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री बनाए गए थे। 2018 में पवैया विधानसभा चुनाव हार गए थे। पवैया की भूमिका बाबरी ढांचे में ढहाए जाने में भी रही है। सीबीआई ने उन्हें ढांचा ढहाने के मामले में मुख्य आरोपी भी बनाया था, लेकिन वे अदालत से निर्दोष बरी हो चुके हैं।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पहले भी चौंकाया
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व खासकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। 2022 में जबलपुर की भाजपा कार्यकर्ता सुमित्रा बाल्मीक को राज्यसभा का टिकट मिलने से पार्टी के नेता भी हैरान हुए थे। इस साल फरवरी में हुए राज्यसभा चुनाव में उज्जैन के बाल योगी उमेशनाथ को उम्मीदवार बनाया, जबकि उनका राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं था।
सुमित्रा बाल्मीक का नाम राज्यसभा के लिए फाइनल होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था- राज्यसभा टिकट मांगने की बात तो भूल ही जाइए, सुमित्रा ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें राज्यसभा का टिकट मिलेगा। उनके लिए नामांकन पत्र भरना सबसे आसान था, क्योंकि उनके पास एक छोटा सा घर है, जिसके मालिक भी उनके पति हैं। वे एक गरीब परिवार से आती है।
2022 में 2 सीटों के लिए भाजपा ने 3 वर्ग को साधा था
मई 2022 में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने तीन वर्ग ओबीसी, दलित और महिला को साधा था। इसमें भी दो महिलाओं कविता पाटीदार व सुमित्रा बाल्मीक को टिकट दिया था। दरअसल, पिछले चुनाव से पहले एमपी की राजनीति में ओबीसी एक बड़ा मुद्दा बन गया था, क्योंकि पिछली बार ओबीसी आरक्षण की वजह से ही पंचायत और निकाय चुनाव टल गया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। इसके बाद ओबीसी को आरक्षण देने का फैसला हुआ था।
प्रदेश में ओबीसी वोटरों की आबादी 50 फीसदी से अधिक है। यही वजह है कि बीजेपी ने निकाय चुनाव से पहले कविता पाटीदार के नाम की घोषणा कर एक बड़ा ओबीसी कार्ड खेला था। इसी तरह सुमित्रा बाल्मीकी को राज्यसभा में भेजकर दलित वर्ग को साधने की कोशिश हुई थी।