या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थिता….
22 मार्च से शुरू हो रहा है नवरात्री का पावन पर्व से देवी दुर्गा की साधना और आरधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुका है। जिसका समापना 30 मार्च को होगा। नवरात्रि पर्व के दौरान नौ दिनों तक देवी दु्र्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा और स्तुति की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों का विशेष महत्व होता है। जिसमें नौ दिनों तक व्रत रखते हुए मां दुर्गा की साधना की जाती है। नौ दिनों तक माता रानी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। हर माता का श्रृंगार और भोग अलग-अलग होता है। मां दुर्गा के भक्त इन नौ दिनों तक मां को उनका प्रिय भोग लगाकर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। आइए जानते हैं मां के सभी 9 स्वरूपों को किस दिन कौन-सा भोग अर्पित करना शुभ और फलदायी रहने वाला होगा।
मां शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रतिपदा तिथि पर मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-आराधना करने की धार्मिक मान्यता है। मां शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं इस कारण से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री को सफेद रंग बेहद प्रिय है। इस दिन मां को गाय के घी का भोग लगाना शुभ माना गया है। इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है।
प्रसाद: प्रथम नवरात्र में मां दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। मां का वाहन वृषभ है तथा इन्हें गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी
दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी की आराधना का दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि यह भोग लगाने से मां ब्रह्मचारिणी दीर्घायु होने का वरदान देती हैं।
प्रसाद: दूसरे नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। मां को शक्कर का भोग प्रिय है।
मां चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। इस दिन मां को दूध से बनी मिठाइयां,खीर आदि का भोग लगाएं। इससे धन-वैभव व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
प्रसाद: मां के इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र बना होने के कारण इनका नाम चन्द्रघंटा पड़ा तथा तीसरे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है तथा मां की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। शेर पर सवारी करने वाली माता को दूध का भोग प्रिय है।
मां कूष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है और माता को मालपुए का भोग लगाया जाता है। इससे मां के भक्तों के बुद्धि का विकास होता है और मनोबल में वृद्धि होती है।
प्रसाद: अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली मां कुष्मांडा की पूजा चौथे नवरात्र में करने का विधान है। इनकी आराधना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार के रोग एवं कष्ट मिट जाते हैं तथा साधक को मां की भक्ति के साथ ही आयु, यश और बल की प्राप्ति भी सहज ही हो जाती है। मां को भोग में मालपूआ अति प्रिय है।
मां स्कंदमाता
पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है और माता को केले का भोग चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि माता को केले का भोग लगाने से सभी शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
प्रसाद: पंचम नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की वस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते हैं। मां का वाहन सिंह है और इन्हें केले का भोग अति प्रिय है।
मां कात्यायनी
नवरात्रि के छठें दिन देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है और माता कात्यायनी को भोग के रूप में लौकी का हलवा,मीठा पान और शहद अर्पित करें।
प्रसाद: महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। छठे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है। मां की कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फलों की जहां प्राप्ति होती है वहीं वह आलौकिक तेज से अलंकृत होकर हर प्रकार के भय, शोक एवं संतापों से मुक्त होकर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। मां को शहद अति प्रिय है।
मां कालरात्रि
सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन देवी कालरात्रि को गुड़ से निर्मित चीजों का भोग लगाना चाहिए। माता कालरात्रि शत्रुओं का नाश करने वाली होती हैं।
प्रसाद: सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई मां दुर्गा के इस रूप की पूजा सातवें नवरात्र में की जाती है। मां के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के भूत, पिशाच एवं भय समाप्त हो जाते हैं। मां की कृपा से भानूचक्र जागृत होता है मां को गुड़ का भोग अति प्रिय है।
मां महागौरी
सुख-समृद्धि के लिए नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा-उपासना करते हैं। माता महागौरी को नारियल का भोग बेहद प्रिय है, इसीलिए नवरात्रि के आठवें दिन भोग के रूप में नारियल चढ़ाएं और मनोवांछित फल की प्राप्ति करें।
प्रसाद: आदिशक्ति मां दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा आठवें नवरात्र में की जाती है। मां ने काली रूप में आने के पश्चात घोर तपस्या की और पुन: गौर वर्ण पाया और महागौरी कहलाई। मां का वाहन बैल है तथा मां को हलवे का भोग लगाया जाता है तभी अष्टमी को पूजन करके मां को हलवे पूरी का भोग लगाया जाता है। मां की कृपा से साधक के सभी कष्ट मिट जाते हैं और उसे आर्थिक लाभ भी मिलता है।
मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि का नौवां दिन माता सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। इस दिन बने हलवा-पूड़ी और खीर का भोग लगा कर कन्या पूजन करना चाहिए।
प्रसाद: नौवें नवरात्र में मां के इस रूप की पूजा एवं आराधना की जाती है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है मां का यह रूप साधक को सभी प्रकार की ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है। जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। मां को खीर अति प्रिय है अत: मां को खीर का भोग लगाना चाहिए।